जीना सीखो
-उत्कर्ष शर्मा
१. कब तक दूसरों की जिंदगी जीते रहोगे ,
कभी खुदकी भी तो जीकर देखो।
रोज़ यू थोड़ा क्यों है मरना,
कभी थोड़ा जीकर देखो।
२. कब तक सीमित चीज़ें देखते रहोगे,
नज़रिये का दायरा भाड़ा कर तो देखो।
थोड़े से दिल क्यों है लगाना,
थोड़ा खुलकर जीना सीखो।
३. कल और काल मैं क्यों है जीना,
आज मैं घर बसा कर तो देखो।
कल की चिंताओं से क्यों है मरना,
थोड़ा आज क सुख मैं जीकर देखो।
४. सुख सुबीता का दायरा छोड़,
थोड़ा झोखिम उठाकर तो देखो।
सपनो को हासिल करना सरल नहीं,
थोड़ा खून, पसीना बहाना सीखो।
५. दीर्घसूत्रता का दामन छोड़ कर,
परिश्रम का हाथ थाम कर तो देखो।
बुलबुलों से ख्वाब नहीं बनते,
ज़रा चिंगारियों से खेलना सीखो।
" एक दुनिया अपनी बना,
अपनी लगन और म्हणत से।
दूसरों क यहाँ तुझे क्यों है रहना,
जहाँ मरना बेहतरार जीने से?"
६. थोड़ा संकल्प, थोड़ी म्हणत जूता कर,
खुद को एक मौका देकर तो देखो।
हार भी गए तो कोई गम नहीं,
जीत की प्यास को भड़ाना सीखो।
७. कब तक दूसरों की जिंदगी जीते रहोगे ,
कभी खुदकी भी तो जीकर देखो।
रोज़ यू थोड़ा क्यों है मरना,
कभी थोड़ा जीकर देखो।
हार भी गए तो कोई गम नहीं,
जीत की प्यास को भड़ाना सीखो।
७. कब तक दूसरों की जिंदगी जीते रहोगे ,
कभी खुदकी भी तो जीकर देखो।
रोज़ यू थोड़ा क्यों है मरना,
कभी थोड़ा जीकर देखो।
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